मानवता की राह छोड़, हिंसा का रूख अपनाया है।
मंदिर-मस्जिद भी महफूज़ नहीं,हर जगह मौत साया है।
राक्षस हीं आतंकवादी बनकर,कलयुग में धरा पर आया है-2।
मंदिर-मस्जिद भी महफूज़ नहीं,हर जगह मौत साया है।
राक्षस हीं आतंकवादी बनकर,कलयुग में धरा पर आया है-2।
घर-आँगन है सुना-सुना,चीख रही दीवारें हैं,
सफेद चादर में लिपटे,कुछ फूल प्यारे-प्यारे हैं।
कराह रही है मानवता, आतंकवाद मिटाने को,
भारत भी तैयार खड़ा है,आतंकी निपटाने को।
उसे जहन्नुम भेज दिया, जिसने भी हथियार उठाया है।।
राक्षस हीं आतंकवादी............-2।
जब भी बढ़ है पाप धरा पर,हमने हीं बोझ उतारा,
हम राम-कृष्ण के वंशज है,जिसने रावण और कंश को मारा है।
तुम अदना-सा कायर हो,अब तेरा अस्तित्व धरा पर किंचित् है,
हम धर्म पथ पर चलने वाले,मेरा विजय सुनिश्चित है,
निर्दोषों पर वार करे तू ,तेरा अंत भी निश्चित है।
आतंकवाद का दुनिया से करना अब सफाया है।।
राक्षस हीं आतंकवादी.................-2।
किसी ने जीवन खपा दिया,एक घर को बनाने में,
क्या तेरी रूह नहीं कांपी ? इन घरो को जलाने में।
ये हैं दहशत फैलाने वाले,इस पर जेहाद का साया है।
ये कभी नहीं सोचेगें, क्या नरसंहार से पाया है।
मानवता पर कलंक हैं ये,साबित कर दिखलाया है।।
राक्षस हीं आतंकवादी ...................3।
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