Sunday, April 28, 2019

Hindi Poem On Labor Day/मजदूर दिवस पर कविता

रचता हूँ मैं महलों को और झुग्गियों जीवन जीता हूँ।
क्या करूँ मैं घुट-घुट के,अपने आँसू को पीता हूँ।
समझे न कोई दर्द मेरा,मैं कितना मजबूर हूँ।
क्योंकि मैं मजदूर हूँ-क्योंकि मैं मजदूर हूँ।।

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कभी धूप में तपता हूँ मैं,कभी आग में जलता हूँ।
कंधों पर जिम्मेवारियों का बोझ लेकर चलता हूँ।
मैं नदियों पर बांंध बांधता, मैं हीं सड़क बनाता हूँ,
पर अपने तकदीर को मैं बना नहीं पाता हूँ।
लगता है जैसे खुदा की नजरो से भी दूर हूँ।
क्योंकि मैं मजबूर हूँ, क्योंकि मैं मजदूर हूँ।।

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मुझे चाह नहीं महलों की,मैं जमीं पर सोता हूँ।
दिन-रात मेहनत करके भी अपने हालत पर रोता हूँ।
अपने सपनों के टूटने का, कहाँ प्रवाह मैं करता हूँ,
मुश्किलों से लड़-लड़कर ,मैं पेट अपनो का भरता हूँ।
छल-कपट मुझमें नहीं, मैं गरीब जरूर हूँ।
क्योंकि मैं मजदूर हूँ-क्योंकि मैं मजदूर हूँ।।

                                      



Thursday, April 25, 2019

Hindi poem on water/जल पर कविता

इकबार सोच के देख जरा ,क्या जल बिना तुम जी पाओगे ?
तरस जाओगे बूंद-बूंद को,...गर व्यर्थ जल को बहाओगे।

कबतक देखोगे तुम जल के बर्बादी के तमाशे,
जब जल खत्म हो जायेगा, मरोगे तुम प्यासे-प्यासे।
सुख रही है नदियाँ-नाले,जल स्तर भी गिर रहा।
आँख खोलकर देख जरा तू ,जल संकट से घिर रहा।
आज नहीं सम्हले तो कल रोओगे-पछताओगे।
तरस जाओगे बूंद.......।

जल बिना जगत सुना है, जल हीं अनुपम धन है।
जल बिना जीवन न होगा, जल हीं तो जीवन है।
अपने बच्चों के हिस्से का जल तुम व्यर्थ बहा रहे।
आने वाली नस्लों के लिए, कैसे दिन तुम ला रहे ?
फिजाओं में जहर भरके,नदियों को नाली करके।
भूजल को खाली करके, तुम कैसे मुँह दिखलाओगे।
तरस जाओगे.........।

इकबार सोचकर देख जरा,क्या जल बिना तुम रह पाओगे।
तरस जाओगे बूंद-बूँद को,..गर व्यर्थ जल को बहाओगे।





Sunday, April 21, 2019

Hindi poem on environment/पर्यावरण पर कविता

वन समन्दर और धरती को,तुम छेड़ रहे हो प्रकृति को।
वन काट बंजर किया और नदियों का धारा मोड़ दिया,
जरा सोच तेरा क्या होगा मानव, जिस दिन प्रकृति तुमको छेड़ दिया।।


प्रकृति भी माँ तुम्हारी,वन है जिसके कपड़े गहने।
बंद करो अब वृक्ष काटना,कपड़े दो कुछ तन पर रहने।
अमृतधारा वाली नदियों को गंदी नाली बना दिया,
धरती को कुड़ादान किया और विष हवा में मिला दिया।
आज नहीं सम्हले तो कल बड़ा हाहाकार होगा,
मौसम परिवर्तन से तेरे सीने पर वार होगा,
तड़प-तड़प कर मरेगें लोग,कहीं बाढ़ कहीं सुखाड़ होगा,
प्रकृति तो अवतल दर्पण है,मानव हीं जिम्मेवार होगा।
सबसे बड़ा खिलाड़ी है वो,कभी देख रहा तेरा खेला,
न समझ वो खेलना छोड़ दिया।जरा सोच तेरा .........।

ये ऊंची-उंची इमारतें सुखी पतियों-सी बिखर जायेगी,
ये आधुनिकता की सनक तेरी इक पल में उतर जायेगी।
संयम देख प्रकृति की इसे बार-बार धिधकारो न,
पलक झपकते उथल-पुथल कर देगी वो इस धरा को,
इसे बार-बार ललकरो न,इसे बार-बार ललकरो न।
तुम्हें अंदाज नहीं क्या होगा,जब प्रकृति संयम तोड़ दिया।
जरा सोच तेरा क्या.............।

वन,समन्दर और धरती को,तुम छेड़ रहे हो प्रकृति को।
वन काट बंजर किया और नदियों का धारा मोड़ दिया,
जरा सोच तेरा क्या होगा मानव, 
जिस दिन प्रकृति तुमको छेड़ दिया।।


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Saturday, April 20, 2019

Hindi poem on earth day/पृथ्वी दिवस पर कविता

जीना है हमें इस धरा पर,यहाँ हीं मर जाना है।
संकट में है अब धरती,हमें धरती माँ को बचाना है।


मानव हीं जिम्मेवार है जलवायु परिवर्तन का,
ग्लेशियर के पिघलने का,विलुप्त हुये जीवन का।
अब हमें बचाना होगा,कल-कल करती नदियों को,
जल में पलता जीवन को,धरती की हरियाली को,
ओजोन परत की जाली को।रोकना है प्लास्टिक
 प्रदूषण और वृक्ष लगाना है।।संकट में है अब धरती....।


खाने को जिसने अन्न दिया,दिया है पानी पीने को।
हर इक संसाधन दिया है जिसने खुशी-खुशी जीवन जीने को।
रो रही अब धरती,इस दया दिखाईये।
संसाधन बचाईये, कृपया पेड़ लगाईये।
फसलो के अवशेषों को अब खेतों में न जलाना है।
संकट में अब धरती..........।

जीना है हमें इस धरा पर यहाँ हीं मर जाना है।
संकट में है अब धरती,हमें धरती माँ को बचाना है।।






शिक्षक दिवस पर शायरी।

विधार्थियों से मैं  कहता हूँ,  शिक्षकों का सम्मान करें। है शिक्षकों से अनुरोध मेरा,  विधार्थियों का चरित्र निर्माण करें।