तरस जाओगे बूंद-बूंद को,...गर व्यर्थ जल को बहाओगे।
कबतक देखोगे तुम जल के बर्बादी के तमाशे,
जब जल खत्म हो जायेगा, मरोगे तुम प्यासे-प्यासे।
सुख रही है नदियाँ-नाले,जल स्तर भी गिर रहा।
आँख खोलकर देख जरा तू ,जल संकट से घिर रहा।
आज नहीं सम्हले तो कल रोओगे-पछताओगे।
तरस जाओगे बूंद.......।
जल बिना जगत सुना है, जल हीं अनुपम धन है।
जल बिना जीवन न होगा, जल हीं तो जीवन है।
अपने बच्चों के हिस्से का जल तुम व्यर्थ बहा रहे।
आने वाली नस्लों के लिए, कैसे दिन तुम ला रहे ?
फिजाओं में जहर भरके,नदियों को नाली करके।
भूजल को खाली करके, तुम कैसे मुँह दिखलाओगे।
तरस जाओगे.........।
इकबार सोचकर देख जरा,क्या जल बिना तुम रह पाओगे।
तरस जाओगे बूंद-बूँद को,..गर व्यर्थ जल को बहाओगे।
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