Saturday, April 20, 2019

Hindi poem on earth day/पृथ्वी दिवस पर कविता

जीना है हमें इस धरा पर,यहाँ हीं मर जाना है।
संकट में है अब धरती,हमें धरती माँ को बचाना है।


मानव हीं जिम्मेवार है जलवायु परिवर्तन का,
ग्लेशियर के पिघलने का,विलुप्त हुये जीवन का।
अब हमें बचाना होगा,कल-कल करती नदियों को,
जल में पलता जीवन को,धरती की हरियाली को,
ओजोन परत की जाली को।रोकना है प्लास्टिक
 प्रदूषण और वृक्ष लगाना है।।संकट में है अब धरती....।


खाने को जिसने अन्न दिया,दिया है पानी पीने को।
हर इक संसाधन दिया है जिसने खुशी-खुशी जीवन जीने को।
रो रही अब धरती,इस दया दिखाईये।
संसाधन बचाईये, कृपया पेड़ लगाईये।
फसलो के अवशेषों को अब खेतों में न जलाना है।
संकट में अब धरती..........।

जीना है हमें इस धरा पर यहाँ हीं मर जाना है।
संकट में है अब धरती,हमें धरती माँ को बचाना है।।






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शिक्षक दिवस पर शायरी।

विधार्थियों से मैं  कहता हूँ,  शिक्षकों का सम्मान करें। है शिक्षकों से अनुरोध मेरा,  विधार्थियों का चरित्र निर्माण करें।