Sunday, April 21, 2019

Hindi poem on environment/पर्यावरण पर कविता

वन समन्दर और धरती को,तुम छेड़ रहे हो प्रकृति को।
वन काट बंजर किया और नदियों का धारा मोड़ दिया,
जरा सोच तेरा क्या होगा मानव, जिस दिन प्रकृति तुमको छेड़ दिया।।


प्रकृति भी माँ तुम्हारी,वन है जिसके कपड़े गहने।
बंद करो अब वृक्ष काटना,कपड़े दो कुछ तन पर रहने।
अमृतधारा वाली नदियों को गंदी नाली बना दिया,
धरती को कुड़ादान किया और विष हवा में मिला दिया।
आज नहीं सम्हले तो कल बड़ा हाहाकार होगा,
मौसम परिवर्तन से तेरे सीने पर वार होगा,
तड़प-तड़प कर मरेगें लोग,कहीं बाढ़ कहीं सुखाड़ होगा,
प्रकृति तो अवतल दर्पण है,मानव हीं जिम्मेवार होगा।
सबसे बड़ा खिलाड़ी है वो,कभी देख रहा तेरा खेला,
न समझ वो खेलना छोड़ दिया।जरा सोच तेरा .........।

ये ऊंची-उंची इमारतें सुखी पतियों-सी बिखर जायेगी,
ये आधुनिकता की सनक तेरी इक पल में उतर जायेगी।
संयम देख प्रकृति की इसे बार-बार धिधकारो न,
पलक झपकते उथल-पुथल कर देगी वो इस धरा को,
इसे बार-बार ललकरो न,इसे बार-बार ललकरो न।
तुम्हें अंदाज नहीं क्या होगा,जब प्रकृति संयम तोड़ दिया।
जरा सोच तेरा क्या.............।

वन,समन्दर और धरती को,तुम छेड़ रहे हो प्रकृति को।
वन काट बंजर किया और नदियों का धारा मोड़ दिया,
जरा सोच तेरा क्या होगा मानव, 
जिस दिन प्रकृति तुमको छेड़ दिया।।


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विधार्थियों से मैं  कहता हूँ,  शिक्षकों का सम्मान करें। है शिक्षकों से अनुरोध मेरा,  विधार्थियों का चरित्र निर्माण करें।