Tuesday, November 12, 2019

Poem on children's day/बालदिवस पर कविता।

बाल दिवस पर कविता।

सुरज मिटाये अंधेरे को,बच्चें गम को मिटाये।
इसलिए बच्चें सदा चाचा नेहरू को भाये।।बाल दिवस पर कविता, बच्ची का फोटो,hindi poem on children's day

प्यारी होती है बचपन की दुनिया,रहता होठों पे मुस्कान सदा,
बच्चों के मन में बसते हैं मानो स्वयं भगवान सदा।
चाचा नेहरू का जन्मदिवस हीं बाल दिवस कहलाये।
इसी लिए बच्चें सदा चाचा नेहरू को भाये।।

देश को दी कई योजनाएं लोहा और इस्पात बनाया,
बांध बनाकर बिजली निकाली,नहरों को खेतों तक पहुँँचाया।
पढ़-लिखकर ऐसा बने हम कि उनके सपनें साकार कर पायें।
इसी बच्चें सदा चाचा नेहरू को भाये।।

समय की ऐसी मार पड़ी है, नफरतों की दीवार खड़ी है,
तुम बच्चों इसे गिराकर रहना।झूठ फरेब की इस दुनिया में
तुम खुद को बचाकर रहना।राह अमन की हम न भुलेगें जो चाचा हमें दिखाये। इसीलिए बच्चें सदा चाचा नेहरू को भाये।।
        

Tuesday, July 16, 2019

Hindi poem on teacher/गुरू पर कविता।

गुरू पर कविता।

जीवन कहीं चट्टानों-सा ठहरा होता,
ये नदियों-सा बहना शुरू न होता,
अगर जीवन में गुरू न होता- 2।।
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आँख रहते हम अंधे होते,
दिन के उजालों में भी देख न पाते।
जनवरों की तरह जंगलो में कहीं भटक रहे होते,
बंदरों की तरह पेड़ों पर कहीं लटक रहे होते।
आदिमानव से मानव न बनता,
जीवन में कुछ करने की आरज़ू न होता।
अगर जीवन में गुरू न होता -2।।
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जिसने मेरे कमियों को दूर कर मुझमें खुबियां भर दिया।
जिसने मुझको ज्ञान देकर मेरे जीवन को सुन्दर किया।
जिसने सत्य-असत्य में भेद बताया,जीवन जीना मुझे सीखाया।
जिसके बिना मैं फूल न बनता और
मुझमें ज्ञान की खुशबू न होता।
अगर जीवन में गुरू न होता -2।
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र मुश्किल को आसान बनाया, सारथी बनकर साथ निभाया।
शिक्षक जैसा शुभचिंतक कोई और नहीं जमाने में,
जिसने सारी शक्ति लगा दी,मुझे मंजिल तक पहुँचाने में।
कहीं अंधेरों में घिरा रहता उजालों से रूबरू न होता।
अगर जीवन में गुरू न होता-2।।

गुरू पर कविता का विडायो।             


Monday, July 15, 2019

Hindi poem on summer / गर्मी पर कविता।

मैं गर्मी हूँ ,मैं और बढ़ूंगी-मैं और बढ़ंगी-मैं और बढ़ूंगी।
मैं लोगों का जीना यहाँ मुश्किल करूंगी,
मैं गर्मी हूँ मैं और बढूंगी-मैं गर्मी हूँ मैं और बढ़ूंगी।।     Hindi poem on summer, summer hindi poem,गर्मी पर कविता।

समय बीताकर भी मैं अपना, मैं न जाऊँ कल-परसो में।
अब मेरा हीं राज चलेगा, आने वाली कुछ वर्षों में।
सर्दी-बरसात भी मानेगी, देखना तुम मेरा कहना,
इन्हें सिकुड़कर पड़ेगा रहना, मैं ऋतुओं पर राज करूँगी।
मैं गर्मी हूँ मैं और बढ़ूँगी -3।  Hindi poem on summer, summer hindi poem ,गर्मी पर कविता। 

जब तुम वृक्षों को काटोगे, जंगलों में आग लगाओगे,
ऐ मानव मेरी शक्ति को तुम और बढ़ाओगे।
बरगद-पीपल का छाया वाले तुम भूल रहे हो कुलर देशी,
आनेवाली कुछ वर्षों में न काम करेगा कुलर-एसी।
तुम घरो में कैद हो जाओगे,और मैं बाहर तांडव करूँगी।
मैं गर्मी हूँ मैं और बढ़ूँगी -3।।


Tuesday, May 28, 2019

Hindi poem on friendship/दोस्ती पर कविता

Hindi poem on friendship

नंगे पांव और ज्येष्ठ दुपहरी,संग जिसके शीतल लगती थी।
दोस्त मेरा सब हीरा था,हर रिश्ता पीतल लगती थी।
वो दोस्त पुराने खो गये,याद उनकी आई तो रो गये -2।

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मेरे घरवालों से नजरें चुराकर,खेलने को बुलाया करता था।
जब भी मैं उदास होता, वो मुझे हँसाया करता था।
जो छोटी-मोटी बातों को भी,मुझे बताया करता था।
मेरी खुशियों का डगर जो था, मेरी राहों का हमसफर जो था।
वो सारे दोस्त पुराने खो गये,याद उनकी..........-2।
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हर खून के रिश्ते से दोस्ती का ओहदा ऊपर था,
गंगाजल-सा पवित्र और दोस्त मेरा सब सुपर था।
फिर से मुझे दोस्ती का वोही जमाना मिल जाता,
सारी दौलत-शोहरत लेकर भी,वो दोस्त पुराना मिल जाता।
मेरे दीये का बाती जो था,मेरे बचपन का साथी जो था।
वो सारे दोस्त पुराने खो गये,याद उनकी ...........-2।
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कुछ दोस्त कमाने निकल गये,कुछ दोस्त बिलकुल बदल गये।
किसी को काम से फुर्सत नहीं,किसी को दोस्तों की जरूरत नहीं।
मेरे संग स्कूल जाता जो था, मेरे हर गम को बांटा जो था।
वो सारे दोस्त पुराने खो गये,याद उनकी...........-3।।


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Wednesday, May 22, 2019

प्रकृति पर कविता/Poem on nature in hindi

जलमग्न हुई कहीं धरा,कहीं बूंद-बूंद को तरसे धरती।
किसने छेड़ा है इसको, क्यों गुस्से में है प्रकृति।।

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किसने घोला विष हवा में,किसने वृक्षों को काटा ?
क्यों बढ़ा है ताप धरा का,क्यों ये धरती जल रही ?
जिम्मेवार है इसका कौन,क्यों ग्लेशियर पिघल रही ?
किसने इसका अपमान किया,
कौन मिटा रहा इसकी कलाकृति ?
किसने छेड़ा है इसको,क्यों गुस्से में..........?

धरती माँ का छलनी कर सीना,प्यास बुझाकर नीर बहाया।
जल स्तर और नैतिकता को भूतल के नीचे पहुँचाया।
विलुप्त हुये जो जीव धरा से,जिम्मेवार है उसका कौन ?
जुल्म सह-सहकर तेरा, अब नहीं रहेगी प्रकृति मौन।
आनेवाले कल की जलवायु परिवर्तन झाकी है।
टेलर है भूकंप, सुनामी, पिक्चर अभी बाकी है।
फिर नहीं कहना कि क्यों कुदरत हो गई बेदर्दी ?

किसने छेड़ा है इसको ,क्यों गुस्से में............3।


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Friday, May 17, 2019

आतंकवाद पर कविता/Hindi poem on terrorism

मानवता की राह छोड़, हिंसा का रूख अपनाया है।
मंदिर-मस्जिद भी महफूज़ नहीं,हर जगह मौत साया है।
राक्षस हीं आतंकवादी बनकर,कलयुग में धरा पर आया है-2।
      

घर-आँगन है सुना-सुना,चीख रही दीवारें हैं,
सफेद चादर में लिपटे,कुछ फूल प्यारे-प्यारे हैं।
कराह रही है मानवता, आतंकवाद मिटाने को,
भारत भी तैयार खड़ा है,आतंकी निपटाने को।
उसे जहन्नुम भेज दिया, जिसने भी हथियार उठाया है।।
राक्षस हीं आतंकवादी............-2।

जब भी बढ़ है पाप धरा पर,हमने हीं बोझ उतारा,
हम राम-कृष्ण के वंशज है,जिसने रावण और कंश को मारा है।
तुम अदना-सा कायर हो,अब तेरा अस्तित्व धरा पर किंचित् है,
हम धर्म पथ पर चलने वाले,मेरा विजय सुनिश्चित है,
निर्दोषों पर वार करे तू ,तेरा अंत भी निश्चित है।
आतंकवाद का दुनिया से करना अब सफाया है।।
राक्षस हीं आतंकवादी.................-2।

किसी ने जीवन खपा दिया,एक घर को बनाने में,
क्या तेरी रूह नहीं कांपी ? इन घरो को जलाने में।
ये हैं दहशत फैलाने वाले,इस पर जेहाद का साया है।
ये कभी नहीं सोचेगें, क्या नरसंहार से पाया है।
मानवता पर कलंक हैं ये,साबित कर दिखलाया है।।
राक्षस हीं आतंकवादी ...................3।




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Sunday, April 28, 2019

Hindi Poem On Labor Day/मजदूर दिवस पर कविता

रचता हूँ मैं महलों को और झुग्गियों जीवन जीता हूँ।
क्या करूँ मैं घुट-घुट के,अपने आँसू को पीता हूँ।
समझे न कोई दर्द मेरा,मैं कितना मजबूर हूँ।
क्योंकि मैं मजदूर हूँ-क्योंकि मैं मजदूर हूँ।।

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कभी धूप में तपता हूँ मैं,कभी आग में जलता हूँ।
कंधों पर जिम्मेवारियों का बोझ लेकर चलता हूँ।
मैं नदियों पर बांंध बांधता, मैं हीं सड़क बनाता हूँ,
पर अपने तकदीर को मैं बना नहीं पाता हूँ।
लगता है जैसे खुदा की नजरो से भी दूर हूँ।
क्योंकि मैं मजबूर हूँ, क्योंकि मैं मजदूर हूँ।।

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मुझे चाह नहीं महलों की,मैं जमीं पर सोता हूँ।
दिन-रात मेहनत करके भी अपने हालत पर रोता हूँ।
अपने सपनों के टूटने का, कहाँ प्रवाह मैं करता हूँ,
मुश्किलों से लड़-लड़कर ,मैं पेट अपनो का भरता हूँ।
छल-कपट मुझमें नहीं, मैं गरीब जरूर हूँ।
क्योंकि मैं मजदूर हूँ-क्योंकि मैं मजदूर हूँ।।

                                      



Thursday, April 25, 2019

Hindi poem on water/जल पर कविता

इकबार सोच के देख जरा ,क्या जल बिना तुम जी पाओगे ?
तरस जाओगे बूंद-बूंद को,...गर व्यर्थ जल को बहाओगे।

कबतक देखोगे तुम जल के बर्बादी के तमाशे,
जब जल खत्म हो जायेगा, मरोगे तुम प्यासे-प्यासे।
सुख रही है नदियाँ-नाले,जल स्तर भी गिर रहा।
आँख खोलकर देख जरा तू ,जल संकट से घिर रहा।
आज नहीं सम्हले तो कल रोओगे-पछताओगे।
तरस जाओगे बूंद.......।

जल बिना जगत सुना है, जल हीं अनुपम धन है।
जल बिना जीवन न होगा, जल हीं तो जीवन है।
अपने बच्चों के हिस्से का जल तुम व्यर्थ बहा रहे।
आने वाली नस्लों के लिए, कैसे दिन तुम ला रहे ?
फिजाओं में जहर भरके,नदियों को नाली करके।
भूजल को खाली करके, तुम कैसे मुँह दिखलाओगे।
तरस जाओगे.........।

इकबार सोचकर देख जरा,क्या जल बिना तुम रह पाओगे।
तरस जाओगे बूंद-बूँद को,..गर व्यर्थ जल को बहाओगे।





Sunday, April 21, 2019

Hindi poem on environment/पर्यावरण पर कविता

वन समन्दर और धरती को,तुम छेड़ रहे हो प्रकृति को।
वन काट बंजर किया और नदियों का धारा मोड़ दिया,
जरा सोच तेरा क्या होगा मानव, जिस दिन प्रकृति तुमको छेड़ दिया।।


प्रकृति भी माँ तुम्हारी,वन है जिसके कपड़े गहने।
बंद करो अब वृक्ष काटना,कपड़े दो कुछ तन पर रहने।
अमृतधारा वाली नदियों को गंदी नाली बना दिया,
धरती को कुड़ादान किया और विष हवा में मिला दिया।
आज नहीं सम्हले तो कल बड़ा हाहाकार होगा,
मौसम परिवर्तन से तेरे सीने पर वार होगा,
तड़प-तड़प कर मरेगें लोग,कहीं बाढ़ कहीं सुखाड़ होगा,
प्रकृति तो अवतल दर्पण है,मानव हीं जिम्मेवार होगा।
सबसे बड़ा खिलाड़ी है वो,कभी देख रहा तेरा खेला,
न समझ वो खेलना छोड़ दिया।जरा सोच तेरा .........।

ये ऊंची-उंची इमारतें सुखी पतियों-सी बिखर जायेगी,
ये आधुनिकता की सनक तेरी इक पल में उतर जायेगी।
संयम देख प्रकृति की इसे बार-बार धिधकारो न,
पलक झपकते उथल-पुथल कर देगी वो इस धरा को,
इसे बार-बार ललकरो न,इसे बार-बार ललकरो न।
तुम्हें अंदाज नहीं क्या होगा,जब प्रकृति संयम तोड़ दिया।
जरा सोच तेरा क्या.............।

वन,समन्दर और धरती को,तुम छेड़ रहे हो प्रकृति को।
वन काट बंजर किया और नदियों का धारा मोड़ दिया,
जरा सोच तेरा क्या होगा मानव, 
जिस दिन प्रकृति तुमको छेड़ दिया।।


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Saturday, April 20, 2019

Hindi poem on earth day/पृथ्वी दिवस पर कविता

जीना है हमें इस धरा पर,यहाँ हीं मर जाना है।
संकट में है अब धरती,हमें धरती माँ को बचाना है।


मानव हीं जिम्मेवार है जलवायु परिवर्तन का,
ग्लेशियर के पिघलने का,विलुप्त हुये जीवन का।
अब हमें बचाना होगा,कल-कल करती नदियों को,
जल में पलता जीवन को,धरती की हरियाली को,
ओजोन परत की जाली को।रोकना है प्लास्टिक
 प्रदूषण और वृक्ष लगाना है।।संकट में है अब धरती....।


खाने को जिसने अन्न दिया,दिया है पानी पीने को।
हर इक संसाधन दिया है जिसने खुशी-खुशी जीवन जीने को।
रो रही अब धरती,इस दया दिखाईये।
संसाधन बचाईये, कृपया पेड़ लगाईये।
फसलो के अवशेषों को अब खेतों में न जलाना है।
संकट में अब धरती..........।

जीना है हमें इस धरा पर यहाँ हीं मर जाना है।
संकट में है अब धरती,हमें धरती माँ को बचाना है।।






शिक्षक दिवस पर शायरी।

विधार्थियों से मैं  कहता हूँ,  शिक्षकों का सम्मान करें। है शिक्षकों से अनुरोध मेरा,  विधार्थियों का चरित्र निर्माण करें।