माटी का वो खेल-खिलौने,था माटी का घर-आंगन मेरा।
भागदौड़ की जिन्दगी ने,छिन लिया बचपन मेरा।।
कागज की कश्ती छिन लिया,बारिश की मस्ती छिन लिया,
चंद पैसे में खुश होते थे,जमाना वो सस्ती का छिन लिया।
इक रस्सी से सब बंधकर दौड़ते थे,रस्सी का वो रेल छिन लिया,
कभी लट्टू,कभी टायर चलना,गुली-डण्डा का खेल छिन लिया।
जवानी दस्तक देकर छिन लिया लड़कपन मेरा।।
भागदौड़ की जिन्दगी ने ...............।
चोरी-चुपे मेरा घर मुझको,दोस्त बुलाने आते थे,
नजर चुरा के घरवालों से,धूप में भी खेल रचाते थे।
सुन-सुनकर किस्सा दादी का,हम सपनों में खो जाते थे,
चाहे शाम जहाँ भी सोयें,सुबह बिस्तर पर पाते थे।
जीवन में बस छाछ रह गया, छिन लिया माखन मेरा।।
भागदौड़ की जिन्दगी ने......................।
माटी का वो खेल-खिलौने,था माटी का घर आंगन मेरा।
भागदौड़ की जिन्दगी ने, छिन लिया बचपन मेरा।।
भागदौड़ की जिन्दगी ने,छिन लिया बचपन मेरा।।
कागज की कश्ती छिन लिया,बारिश की मस्ती छिन लिया,
चंद पैसे में खुश होते थे,जमाना वो सस्ती का छिन लिया।
इक रस्सी से सब बंधकर दौड़ते थे,रस्सी का वो रेल छिन लिया,
कभी लट्टू,कभी टायर चलना,गुली-डण्डा का खेल छिन लिया।
जवानी दस्तक देकर छिन लिया लड़कपन मेरा।।
भागदौड़ की जिन्दगी ने ...............।
चोरी-चुपे मेरा घर मुझको,दोस्त बुलाने आते थे,
नजर चुरा के घरवालों से,धूप में भी खेल रचाते थे।
सुन-सुनकर किस्सा दादी का,हम सपनों में खो जाते थे,
चाहे शाम जहाँ भी सोयें,सुबह बिस्तर पर पाते थे।
जीवन में बस छाछ रह गया, छिन लिया माखन मेरा।।
भागदौड़ की जिन्दगी ने......................।
माटी का वो खेल-खिलौने,था माटी का घर आंगन मेरा।
भागदौड़ की जिन्दगी ने, छिन लिया बचपन मेरा।।
सच मेंं बचपन जीवन का सबसे अनमोल अवस्था है।
ReplyDeleteयार ये तो बचपन की यादें ताजा कर गयीं।
ReplyDeleteशाबाश दोस्त।